Sunday, March 29, 2009

क्रिकेट ही लोकप्रिय क्यों

भारत के राष्ट्रीय खेल का ठप्पा हाकी के साथ है, पर क्रिकेट अघोषित रूप से उसके स्थान को हथिया चुका है। यूरोपीय देशों या अन्य महादेशों में जोश, हिम्मत व शक्ति को जगाने वाले फुटबाल का गजब का क्रेज है। भारत में भी कभी मोहन बागान-ईस्ट, बंगाल-मोहम्मडन स्पोर्टिंग सरीखे क्लब ने फुटबाल को एक दिशा दे दी थी। टेनिस में रामनाथन कृष्णन-विजय अमृतराज जैसे दिग्गजों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की पहचान बनाई थी। बिलियड्र्स में माइकल फरेरा ने भी वही काम किया। प्रश्न उठता है आखिर ऐसा क्या हो गया कि खेल प्रेमी सुनील गावस्कर, कपिलदेव, बिशन सिंह बेदी ...... जैसे पुराने नामों के एहसासमात्र से रोमांचित हो उठते है........ जी हां, मेरी समझ में क्रिकेट को आकाशवाणी का शुक्रगुजार होना चाहिए। यह अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हिंदुस्तान में क्रिकेट की जननी आल इंडिया रेडियो है। जिसकी रनिंग कमेंट्री (आंखों देखा हाल) ने भारतीय जनमानस पर राज किया। जिसके बाल-टू-बाल विवरण को याद कर आज भी पुराने रेडियो श्रोता नाम गिनाने लगते हैं... उन शख्सियतों का जिन्हें वास्तव में क्रेडिट जाता है। दमदार आवाज, क्रिकेट शब्दावली पर अद्भुत पकड़, फर्राटेदार हिंदी/अंग्रेजी....आदि औजारों से युक्त आकाशवाणी का प्रसारण सड़कों और गलियों से गुजरते लोगों को भी रुकने के लिए बाध्य कर देता था। वरना वेस्टइंडीज में चल रहे टेस्ट मैच को दौरान मशहूर कमेंटेटर सुशील दोषी को उस वक्त यह गुजारिश करने की जरूरत महसूस नहीं होती कि- कमजोर दिल वाले रेडियो बंद कर लें......। सच है, आज क्रिकेट उन ऊंचाइयों को छू रहा है तो आकाशवाणी ने ही उसकी आधारशिला रखी, जिस पर लोकप्रियता का एक ऐसा मकां तैयार हो गया जिसको अब हिलाना मुश्किल है। मंसूर अली खां पटौदी ने चाहे जिस भी परिस्थिति में कह दिया हो कि भारत को राष्ट्रीय खेल क्रिकेट को घोषित कर दिया जाए... बिल्कुल समीचीन है।
मायनाज रेडियो कमेंट्रीकारों के बारे में शीघ्र पढि़ए......

3 comments:

  1. welcome to blogworld.
    good old memories of cricket recharged.
    my best wishes
    dr.bhoopendra

    ReplyDelete
  2. अच्छी शुरुआत, स्वागत ब्लॉग परिवार में.

    ReplyDelete
  3. हिंदी ब्लॉग पर आपका स्वागत है... आपका प्रभावी लेखन है...

    ReplyDelete