Tuesday, March 31, 2009

कंमेंट्री के जादूगर मुरली मनोहर मंजुल

शुरुआती आलेख में मैंने उन यादों को टटोलने की कोशिश शुरू की थी, जिसमें बसे हैं भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता के सूत्र। जिसका पूरा श्रेय जाता है आकाशवाणी के खेल प्रसारण को। प्रस्तुत आलेख की इस कड़ी में याद करेंगे हिंदी कमेंट्री के अद्भुत कंमेंट्रीकार मुरली मनोहर मंजुल (1970-80 दशक) को, जिनकी आवाज क्रिकेट के आकाश में आज भी तैर रही है।
हिंदी क्रिकेट कंमेंट्री को रुचिकर रूप देने में मंजुल को महारत हासिल है। उन्होंने जब भी कमेंट्री की, सुनकर कभी ऐसा नहीं लगा कि सुननेवाला रेडियो पर मैच का 'आखों देखा हाल' सुन रहा है, बल्कि ऐसा लगा कि वह मैच को मंजुल की आखों से देख रहा है। आज के प्राइवेट एफएम प्रसारण को आपने जरूर सुना होगा। रेडियो जाकी (प्रस्तुतकर्ता) के फर्राटेदार बोलने के अंदाज में हिंदी चरमराकर रह गई है। तेज बोलने के चक्कर में हिंदी-अंग्रजी का घालमेल हो गया है। परंतु मंजुल कंमेंट्री के फर्राटेदार डग भरने के क्रम में कभी भी लडख़ड़ए नहीं, निर्बाधगति से बढ़ते चले गए। उन्होंने कई ऐसे शब्दों को चलाया, कई खंड वाक्यों का लगातार प्रयोग किया जिससे हिंदी कमेंट्री को एक आधार तो मिला ही क्रिकेट के प्रति दीवानगी भी बढ़ती गई।आज कमेंट्री के दौरान कोई यह दोहराता है कि बालर की अपील में अनुमान ज्यादा, विश्वास कम, पूरा स्टेडियम धूप में नहाया हुआ... तो ये शब्द बरबस ही मुरली मनोहर को सामने ला खड़े करते हैं. स्कोर बोलने के क्रम में इक्यानबे (91) को उन्होंने हमेशा इकरानबे बोला। ऐसा क्यों- यह तो मालूम नहीं, यह मान कर चला जा सकता है कि वे राजस्थान के किसी अंचल की बोली से प्रभावित होंगे, क्योंकि उन्होंने जयपुर को अपना कार्यक्षेत्र के रूप में चुना था। भारत में टेस्ट मैच अमूमन 10 बजे से शुरू हुआ करता था, कमोबेश आज भी यही समय है। सुबह 9:55 पर कमेंट्री की शुरूआत हो जाती थी। लोग अपने रडियो सेट उस समय से आन कर लेते थे जब आकाशवाणी से उद्घोषणा कि जाती थी, कि आज का मैच कहां हो रहा है, कमेंटेटरों के नाम क्या हैं, आदि.... लोग धड़कते दिल से उस मैच के कमेंटेटर के रूप में मुरली मनोहर मंजुल के नाम की उद्घोषणा सुनने की बाट जोह रहे होते थे। मंजुल और सुरेश सरैया (अंग्रेजी कमेंटेटर) की जुगलबंदी का जवाब नहीं था। कमेंट्री के दौरान दोनों में गजब का तालमेल था। उस वक्त ऐसा कभी नहीं लगा कि हिंदी के श्रोताओं को सुरेश की अंग्रेजी समझने में दिक्कत आ रही है। और यही काम भारतीय टीम के वर्तमान न्यूजीलैंड दौरे के क्रम में सुरेश के साथ विनीत गर्ग कर रहे हैं. 'आकाशवाणी की अंतरकथा' मंजुल लिखित किताब को प्रसिद्ध मिली।


जारी...

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