Sunday, April 5, 2009

स्कंद गुप्त, जिनका लहजा खूब भाया

आकाशवाणी की क्रिकेट कंमेंट्री जिसने भारत के घर-घर में अपनी पैठ बनाई। लोगों ने बड़े चाव से मैच के हर क्षण का जिया। वह भी एक वक्त था जब लोग रेडियो-ट्रांजिस्टर के बिना खुद को अधूरा महसूस करते थे और जब क्रिकेट मैच चल रहा हो तो इस स्वर यंत्र को लिये अपने कार्य स्थल तक पहुंच जाते थे। या यूं कहिए क्रिकेट कमेंट्री सुनना बड़े-बूढ़ों, बच्चे-जवान सभी के लिए फैशन बन गया था।
आकाशवाणी की क्रिकेट कमेंट्री को श्रोताओं के मानस पटल पर उकेरने में अहम भूमिका निभानेवालों में एक नाम स्कंद गुप्त का भी आता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इस विद्वान प्राध्यापक का हिंदी और अंग्रेजी पर समान अधिकार था। थे तो अंग्रेजी के प्रोफेसर लेकिन हिंदी की बारीकियों को बड़े अद्भुत तरीके से प्रस्तुत किया। सबसे बढ़कर कमेंट्री के दौरान वे सटीक और उपयुक्त शब्दों का प्रयोग करते थे, इसे आप उनका व्यंग्यात्मक लहजा भी कह सकते थे। मुझे याद है एक बार उन्होंने एक टेस्ट मैच का आखों देखा हाल सुनाने के क्रम में यह कहते हुए सुननेवालों का मनोरंजन किया था- अगर मैैं इस वक्त इंग्लैैंड में कमेंट्री कर रहा होता तो स्कोर- 88 को - टू फैट लेडीज कहता।
स्कंद गुप्त अपनी बात को बड़े ही मजबूती के साथ रखते थे। इस दौरान उनकी तल्ख टिप्पणी सुनते ही बनती थी। ऐसा भी समय था जब लोग स्टेडियम में मैच देखते हुए कंमेंट्री का मजा लेना पसंद करते थे। दर्शक रेडियो सेट के साथ स्टेडियम पहुंच जाते थे और ऊंचे वोल्यूम पर कमेंट्री चला देते थे जिससे कमेंट्री बाक्स में कमेंट्री कर रहे को खुद की आवाज सुनाई पड़ती थी, जिससे प्रसारण में दिक्कत पेश आती थी। उस वक्त स्कंद गुप्त की दर्शकों से गुजारिश कि वे अपने सेट की आवाज को कम कर दें- मुझे खुद की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ रही है, उनका यह अंदाज काफी लुभावना होता था। बंद नही करने पर कड़क अंदाज में वे रडियो पर ही वैसे दर्शकों पर बरस पड़ते थे। आज के दौर के कमेंट्रकारों में वह जज्बा कहां है।
आज हम उनकी आवाज नहीं सुन सकते पर उनके एक-एक प्रभावी क्षण को जरूर अनुभव कर सकते हैं। जारी

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