Wednesday, April 15, 2009

लाजवाब थी जेपी नारायणन की दहाड़

भारत में क्रिकेट को लोकप्रियता के शिखर पर स्थापित करने में आकाशवाणी के खेल प्रसारण का अद्भुत योगदान रहा। लुभावनी क्रिकेट कमेंट्री घर-घर की शान बन गई। आज की इस कड़ी में हम चर्चा करेंगे जिंदादिल कमेंट्रीकार नारायणन जय प्रकाश यानी जेपी नारायणन की कमेंट्री की। थे तो अंग्रेजी के कमेंटेटर परंतु हिंदी के श्रोताओं ने भी इनकी कमेंट्री को खूब सराहा। क्या बुलंद आवाज था उनकी। उनके एक-एक शब्द सुननवालों पर गजब का असर करते थे। हिंदी और अंग्रेजी में बारी-बारी से की जानेवाली कमेंट्री के दौरान जब भी उनकी बारी आती थी लोगों के कान खड़े हो जाते थे।
जेपी नारायणन ने अपने अंतरराष्ट्रीय वनडे क्रिकेट कमेंट्री का शतक जमशेदपुर के कीनन स्टेडियम में (9 अप्रैल 2005) लगाया। यहां उन्होंने भारत-पाकिस्तान वनडे सीरीज के मैच में कमेंट्री की। जमशेदपुर में उनसे मिलने का मुझे सौभाग्य मिला। रेडियो पर उनके बोलने के अंदाज ने मेरे मन में उनकी एक ऐसी छवि बना डाली थी कि वह सिर्फ अंग्रेजी जानते होगें। परंतु जब मैं उनसे मिला तो पता चला कि वे अंग्रेजी के अलावा हिंदी और उर्दू पर भी अच्छी पकड़ रखते हैं। मैंने इस पर आश्चर्य भी जताया था। उनका कहना था- मैं केरल से हूं, इसलिए अंग्रेजी विरासत में मिली, भोपाल में कार्यक्षेत्र रहा इसलिए हिंदी और उर्दू के करीब पहुंच गया। (वे भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लि.(भेल) में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत थे।) जेपी अपने साठवें वर्ष की ओर बढ़ रहे थे, लेकिन उम्र के उस पड़ाव पर ज्यादा ही दुर्बल दिखे। उनसे मैंने पूछा भी- कब तक कमेंट्री जारी रखेंगे, इनका सीधा जवाब मिला- जब तक सांसें साथ देगीं, करता रहूंगा। दुर्भाग्यवश जमशेदपुर से लौटने के बाद ही उन्होंने बिस्तर पकड़ ली और 5 अक्टूबर 2005 को क्रिकेटजहां को अलविदा कह दिया।
जारी....

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