भारत में क्रिकेट को लोकप्रियता के शिखर पर स्थापित करने में आकाशवाणी के खेल प्रसारण का अद्भुत योगदान रहा। लुभावनी क्रिकेट कमेंट्री घर-घर की शान बन गई। आज की इस कड़ी में हम चर्चा करेंगे जिंदादिल कमेंट्रीकार नारायणन जय प्रकाश यानी जेपी नारायणन की कमेंट्री की। थे तो अंग्रेजी के कमेंटेटर परंतु हिंदी के श्रोताओं ने भी इनकी कमेंट्री को खूब सराहा। क्या बुलंद आवाज था उनकी। उनके एक-एक शब्द सुननवालों पर गजब का असर करते थे। हिंदी और अंग्रेजी में बारी-बारी से की जानेवाली कमेंट्री के दौरान जब भी उनकी बारी आती थी लोगों के कान खड़े हो जाते थे।
जेपी नारायणन ने अपने अंतरराष्ट्रीय वनडे क्रिकेट कमेंट्री का शतक जमशेदपुर के कीनन स्टेडियम में (9 अप्रैल 2005) लगाया। यहां उन्होंने भारत-पाकिस्तान वनडे सीरीज के मैच में कमेंट्री की। जमशेदपुर में उनसे मिलने का मुझे सौभाग्य मिला। रेडियो पर उनके बोलने के अंदाज ने मेरे मन में उनकी एक ऐसी छवि बना डाली थी कि वह सिर्फ अंग्रेजी जानते होगें। परंतु जब मैं उनसे मिला तो पता चला कि वे अंग्रेजी के अलावा हिंदी और उर्दू पर भी अच्छी पकड़ रखते हैं। मैंने इस पर आश्चर्य भी जताया था। उनका कहना था- मैं केरल से हूं, इसलिए अंग्रेजी विरासत में मिली, भोपाल में कार्यक्षेत्र रहा इसलिए हिंदी और उर्दू के करीब पहुंच गया। (वे भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लि.(भेल) में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत थे।) जेपी अपने साठवें वर्ष की ओर बढ़ रहे थे, लेकिन उम्र के उस पड़ाव पर ज्यादा ही दुर्बल दिखे। उनसे मैंने पूछा भी- कब तक कमेंट्री जारी रखेंगे, इनका सीधा जवाब मिला- जब तक सांसें साथ देगीं, करता रहूंगा। दुर्भाग्यवश जमशेदपुर से लौटने के बाद ही उन्होंने बिस्तर पकड़ ली और 5 अक्टूबर 2005 को क्रिकेटजहां को अलविदा कह दिया।
जारी....
Wednesday, April 15, 2009
Tuesday, April 7, 2009
आखिर बन ही गया इतिहास
भारत ने न्यूजीलैंड को उसके ही घर में १-० से हरा दिया. अब इस मुद्दे पर आज देश के सारे अखबारों ने अपने पन्ने काले किए होंगे, मैं क्या लिखूं. छोड़िए, मैं अपने पुराने मुद्दे पर ही कायम रहूंगा, कल लिखूंगा..........क्रिकेट को भारत में लोकप्रिय बनाने में महती भूमिका निभाने वाले आकाशवाणी के एक और खास कमेंट्रीकार जेपी नारायणन के बारे में.
Sunday, April 5, 2009
स्कंद गुप्त, जिनका लहजा खूब भाया
आकाशवाणी की क्रिकेट कंमेंट्री जिसने भारत के घर-घर में अपनी पैठ बनाई। लोगों ने बड़े चाव से मैच के हर क्षण का जिया। वह भी एक वक्त था जब लोग रेडियो-ट्रांजिस्टर के बिना खुद को अधूरा महसूस करते थे और जब क्रिकेट मैच चल रहा हो तो इस स्वर यंत्र को लिये अपने कार्य स्थल तक पहुंच जाते थे। या यूं कहिए क्रिकेट कमेंट्री सुनना बड़े-बूढ़ों, बच्चे-जवान सभी के लिए फैशन बन गया था।
आकाशवाणी की क्रिकेट कमेंट्री को श्रोताओं के मानस पटल पर उकेरने में अहम भूमिका निभानेवालों में एक नाम स्कंद गुप्त का भी आता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इस विद्वान प्राध्यापक का हिंदी और अंग्रेजी पर समान अधिकार था। थे तो अंग्रेजी के प्रोफेसर लेकिन हिंदी की बारीकियों को बड़े अद्भुत तरीके से प्रस्तुत किया। सबसे बढ़कर कमेंट्री के दौरान वे सटीक और उपयुक्त शब्दों का प्रयोग करते थे, इसे आप उनका व्यंग्यात्मक लहजा भी कह सकते थे। मुझे याद है एक बार उन्होंने एक टेस्ट मैच का आखों देखा हाल सुनाने के क्रम में यह कहते हुए सुननेवालों का मनोरंजन किया था- अगर मैैं इस वक्त इंग्लैैंड में कमेंट्री कर रहा होता तो स्कोर- 88 को - टू फैट लेडीज कहता।
स्कंद गुप्त अपनी बात को बड़े ही मजबूती के साथ रखते थे। इस दौरान उनकी तल्ख टिप्पणी सुनते ही बनती थी। ऐसा भी समय था जब लोग स्टेडियम में मैच देखते हुए कंमेंट्री का मजा लेना पसंद करते थे। दर्शक रेडियो सेट के साथ स्टेडियम पहुंच जाते थे और ऊंचे वोल्यूम पर कमेंट्री चला देते थे जिससे कमेंट्री बाक्स में कमेंट्री कर रहे को खुद की आवाज सुनाई पड़ती थी, जिससे प्रसारण में दिक्कत पेश आती थी। उस वक्त स्कंद गुप्त की दर्शकों से गुजारिश कि वे अपने सेट की आवाज को कम कर दें- मुझे खुद की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ रही है, उनका यह अंदाज काफी लुभावना होता था। बंद नही करने पर कड़क अंदाज में वे रडियो पर ही वैसे दर्शकों पर बरस पड़ते थे। आज के दौर के कमेंट्रकारों में वह जज्बा कहां है।
आज हम उनकी आवाज नहीं सुन सकते पर उनके एक-एक प्रभावी क्षण को जरूर अनुभव कर सकते हैं। जारी
आकाशवाणी की क्रिकेट कमेंट्री को श्रोताओं के मानस पटल पर उकेरने में अहम भूमिका निभानेवालों में एक नाम स्कंद गुप्त का भी आता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इस विद्वान प्राध्यापक का हिंदी और अंग्रेजी पर समान अधिकार था। थे तो अंग्रेजी के प्रोफेसर लेकिन हिंदी की बारीकियों को बड़े अद्भुत तरीके से प्रस्तुत किया। सबसे बढ़कर कमेंट्री के दौरान वे सटीक और उपयुक्त शब्दों का प्रयोग करते थे, इसे आप उनका व्यंग्यात्मक लहजा भी कह सकते थे। मुझे याद है एक बार उन्होंने एक टेस्ट मैच का आखों देखा हाल सुनाने के क्रम में यह कहते हुए सुननेवालों का मनोरंजन किया था- अगर मैैं इस वक्त इंग्लैैंड में कमेंट्री कर रहा होता तो स्कोर- 88 को - टू फैट लेडीज कहता।
स्कंद गुप्त अपनी बात को बड़े ही मजबूती के साथ रखते थे। इस दौरान उनकी तल्ख टिप्पणी सुनते ही बनती थी। ऐसा भी समय था जब लोग स्टेडियम में मैच देखते हुए कंमेंट्री का मजा लेना पसंद करते थे। दर्शक रेडियो सेट के साथ स्टेडियम पहुंच जाते थे और ऊंचे वोल्यूम पर कमेंट्री चला देते थे जिससे कमेंट्री बाक्स में कमेंट्री कर रहे को खुद की आवाज सुनाई पड़ती थी, जिससे प्रसारण में दिक्कत पेश आती थी। उस वक्त स्कंद गुप्त की दर्शकों से गुजारिश कि वे अपने सेट की आवाज को कम कर दें- मुझे खुद की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ रही है, उनका यह अंदाज काफी लुभावना होता था। बंद नही करने पर कड़क अंदाज में वे रडियो पर ही वैसे दर्शकों पर बरस पड़ते थे। आज के दौर के कमेंट्रकारों में वह जज्बा कहां है।
आज हम उनकी आवाज नहीं सुन सकते पर उनके एक-एक प्रभावी क्षण को जरूर अनुभव कर सकते हैं। जारी
Tuesday, March 31, 2009
कंमेंट्री के जादूगर मुरली मनोहर मंजुल
शुरुआती आलेख में मैंने उन यादों को टटोलने की कोशिश शुरू की थी, जिसमें बसे हैं भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता के सूत्र। जिसका पूरा श्रेय जाता है आकाशवाणी के खेल प्रसारण को। प्रस्तुत आलेख की इस कड़ी में याद करेंगे हिंदी कमेंट्री के अद्भुत कंमेंट्रीकार मुरली मनोहर मंजुल (1970-80 दशक) को, जिनकी आवाज क्रिकेट के आकाश में आज भी तैर रही है।
हिंदी क्रिकेट कंमेंट्री को रुचिकर रूप देने में मंजुल को महारत हासिल है। उन्होंने जब भी कमेंट्री की, सुनकर कभी ऐसा नहीं लगा कि सुननेवाला रेडियो पर मैच का 'आखों देखा हाल' सुन रहा है, बल्कि ऐसा लगा कि वह मैच को मंजुल की आखों से देख रहा है। आज के प्राइवेट एफएम प्रसारण को आपने जरूर सुना होगा। रेडियो जाकी (प्रस्तुतकर्ता) के फर्राटेदार बोलने के अंदाज में हिंदी चरमराकर रह गई है। तेज बोलने के चक्कर में हिंदी-अंग्रजी का घालमेल हो गया है। परंतु मंजुल कंमेंट्री के फर्राटेदार डग भरने के क्रम में कभी भी लडख़ड़ए नहीं, निर्बाधगति से बढ़ते चले गए। उन्होंने कई ऐसे शब्दों को चलाया, कई खंड वाक्यों का लगातार प्रयोग किया जिससे हिंदी कमेंट्री को एक आधार तो मिला ही क्रिकेट के प्रति दीवानगी भी बढ़ती गई।आज कमेंट्री के दौरान कोई यह दोहराता है कि बालर की अपील में अनुमान ज्यादा, विश्वास कम, पूरा स्टेडियम धूप में नहाया हुआ... तो ये शब्द बरबस ही मुरली मनोहर को सामने ला खड़े करते हैं. स्कोर बोलने के क्रम में इक्यानबे (91) को उन्होंने हमेशा इकरानबे बोला। ऐसा क्यों- यह तो मालूम नहीं, यह मान कर चला जा सकता है कि वे राजस्थान के किसी अंचल की बोली से प्रभावित होंगे, क्योंकि उन्होंने जयपुर को अपना कार्यक्षेत्र के रूप में चुना था। भारत में टेस्ट मैच अमूमन 10 बजे से शुरू हुआ करता था, कमोबेश आज भी यही समय है। सुबह 9:55 पर कमेंट्री की शुरूआत हो जाती थी। लोग अपने रडियो सेट उस समय से आन कर लेते थे जब आकाशवाणी से उद्घोषणा कि जाती थी, कि आज का मैच कहां हो रहा है, कमेंटेटरों के नाम क्या हैं, आदि.... लोग धड़कते दिल से उस मैच के कमेंटेटर के रूप में मुरली मनोहर मंजुल के नाम की उद्घोषणा सुनने की बाट जोह रहे होते थे। मंजुल और सुरेश सरैया (अंग्रेजी कमेंटेटर) की जुगलबंदी का जवाब नहीं था। कमेंट्री के दौरान दोनों में गजब का तालमेल था। उस वक्त ऐसा कभी नहीं लगा कि हिंदी के श्रोताओं को सुरेश की अंग्रेजी समझने में दिक्कत आ रही है। और यही काम भारतीय टीम के वर्तमान न्यूजीलैंड दौरे के क्रम में सुरेश के साथ विनीत गर्ग कर रहे हैं. 'आकाशवाणी की अंतरकथा' मंजुल लिखित किताब को प्रसिद्ध मिली।
जारी...
हिंदी क्रिकेट कंमेंट्री को रुचिकर रूप देने में मंजुल को महारत हासिल है। उन्होंने जब भी कमेंट्री की, सुनकर कभी ऐसा नहीं लगा कि सुननेवाला रेडियो पर मैच का 'आखों देखा हाल' सुन रहा है, बल्कि ऐसा लगा कि वह मैच को मंजुल की आखों से देख रहा है। आज के प्राइवेट एफएम प्रसारण को आपने जरूर सुना होगा। रेडियो जाकी (प्रस्तुतकर्ता) के फर्राटेदार बोलने के अंदाज में हिंदी चरमराकर रह गई है। तेज बोलने के चक्कर में हिंदी-अंग्रजी का घालमेल हो गया है। परंतु मंजुल कंमेंट्री के फर्राटेदार डग भरने के क्रम में कभी भी लडख़ड़ए नहीं, निर्बाधगति से बढ़ते चले गए। उन्होंने कई ऐसे शब्दों को चलाया, कई खंड वाक्यों का लगातार प्रयोग किया जिससे हिंदी कमेंट्री को एक आधार तो मिला ही क्रिकेट के प्रति दीवानगी भी बढ़ती गई।आज कमेंट्री के दौरान कोई यह दोहराता है कि बालर की अपील में अनुमान ज्यादा, विश्वास कम, पूरा स्टेडियम धूप में नहाया हुआ... तो ये शब्द बरबस ही मुरली मनोहर को सामने ला खड़े करते हैं. स्कोर बोलने के क्रम में इक्यानबे (91) को उन्होंने हमेशा इकरानबे बोला। ऐसा क्यों- यह तो मालूम नहीं, यह मान कर चला जा सकता है कि वे राजस्थान के किसी अंचल की बोली से प्रभावित होंगे, क्योंकि उन्होंने जयपुर को अपना कार्यक्षेत्र के रूप में चुना था। भारत में टेस्ट मैच अमूमन 10 बजे से शुरू हुआ करता था, कमोबेश आज भी यही समय है। सुबह 9:55 पर कमेंट्री की शुरूआत हो जाती थी। लोग अपने रडियो सेट उस समय से आन कर लेते थे जब आकाशवाणी से उद्घोषणा कि जाती थी, कि आज का मैच कहां हो रहा है, कमेंटेटरों के नाम क्या हैं, आदि.... लोग धड़कते दिल से उस मैच के कमेंटेटर के रूप में मुरली मनोहर मंजुल के नाम की उद्घोषणा सुनने की बाट जोह रहे होते थे। मंजुल और सुरेश सरैया (अंग्रेजी कमेंटेटर) की जुगलबंदी का जवाब नहीं था। कमेंट्री के दौरान दोनों में गजब का तालमेल था। उस वक्त ऐसा कभी नहीं लगा कि हिंदी के श्रोताओं को सुरेश की अंग्रेजी समझने में दिक्कत आ रही है। और यही काम भारतीय टीम के वर्तमान न्यूजीलैंड दौरे के क्रम में सुरेश के साथ विनीत गर्ग कर रहे हैं. 'आकाशवाणी की अंतरकथा' मंजुल लिखित किताब को प्रसिद्ध मिली।
जारी...
Sunday, March 29, 2009
क्रिकेट ही लोकप्रिय क्यों
भारत के राष्ट्रीय खेल का ठप्पा हाकी के साथ है, पर क्रिकेट अघोषित रूप से उसके स्थान को हथिया चुका है। यूरोपीय देशों या अन्य महादेशों में जोश, हिम्मत व शक्ति को जगाने वाले फुटबाल का गजब का क्रेज है। भारत में भी कभी मोहन बागान-ईस्ट, बंगाल-मोहम्मडन स्पोर्टिंग सरीखे क्लब ने फुटबाल को एक दिशा दे दी थी। टेनिस में रामनाथन कृष्णन-विजय अमृतराज जैसे दिग्गजों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की पहचान बनाई थी। बिलियड्र्स में माइकल फरेरा ने भी वही काम किया। प्रश्न उठता है आखिर ऐसा क्या हो गया कि खेल प्रेमी सुनील गावस्कर, कपिलदेव, बिशन सिंह बेदी ...... जैसे पुराने नामों के एहसासमात्र से रोमांचित हो उठते है........ जी हां, मेरी समझ में क्रिकेट को आकाशवाणी का शुक्रगुजार होना चाहिए। यह अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हिंदुस्तान में क्रिकेट की जननी आल इंडिया रेडियो है। जिसकी रनिंग कमेंट्री (आंखों देखा हाल) ने भारतीय जनमानस पर राज किया। जिसके बाल-टू-बाल विवरण को याद कर आज भी पुराने रेडियो श्रोता नाम गिनाने लगते हैं... उन शख्सियतों का जिन्हें वास्तव में क्रेडिट जाता है। दमदार आवाज, क्रिकेट शब्दावली पर अद्भुत पकड़, फर्राटेदार हिंदी/अंग्रेजी....आदि औजारों से युक्त आकाशवाणी का प्रसारण सड़कों और गलियों से गुजरते लोगों को भी रुकने के लिए बाध्य कर देता था। वरना वेस्टइंडीज में चल रहे टेस्ट मैच को दौरान मशहूर कमेंटेटर सुशील दोषी को उस वक्त यह गुजारिश करने की जरूरत महसूस नहीं होती कि- कमजोर दिल वाले रेडियो बंद कर लें......। सच है, आज क्रिकेट उन ऊंचाइयों को छू रहा है तो आकाशवाणी ने ही उसकी आधारशिला रखी, जिस पर लोकप्रियता का एक ऐसा मकां तैयार हो गया जिसको अब हिलाना मुश्किल है। मंसूर अली खां पटौदी ने चाहे जिस भी परिस्थिति में कह दिया हो कि भारत को राष्ट्रीय खेल क्रिकेट को घोषित कर दिया जाए... बिल्कुल समीचीन है।
मायनाज रेडियो कमेंट्रीकारों के बारे में शीघ्र पढि़ए......
मायनाज रेडियो कमेंट्रीकारों के बारे में शीघ्र पढि़ए......
यह ब्लाग क्यों
क्रिकेट की दुनिया में आपका स्वागत है दोस्तो. ढेर सारी क्रिकेट की साइटों और ब्लागों के बीच एक नया क्रिकेट आधारित ब्लाग बनाने के पीछे सिर्फ क्रिकेट है. सच है क्रिकेट आज की तारीख में भारत के खेलों का राजा है. तो क्यों न हम भी इसी क्रिकेट को और पसारें.
Subscribe to:
Posts (Atom)